मतुआ आई कार्ड पर केंद्रीय मंत्री के बयान से शुरू हुआ बंगाल बीजेपी में विवाद, जानें क्या है मामला?

West Bengal BJP Controversy: अखिल भारतीय मतुआ महासंघ की ओर से मतुआ समुदाय के सदस्यों को जारी किए गए पहचान पत्र पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बयान से उनकी पार्टी के भीतर ही विवाद खड़ा हो गया है. मंत्री मिश्रा ने हाल में बयान दिया कि अखिल भारतीय मतुआ महासंघ की ओर से दलित मतुआ समुदाय के सदस्यों को जारी किए गए पहचान पत्र को पूरे भारत में एक आधिकारिक पहचान दस्तावेज के रूप में माना जाएगा, जब तक कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू नहीं हो जाता. एचटी की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर 24 परगना जिले के हरिनघाटा से बीजेपी विधायक असीम सरकार ने सार्वजनिक रूप से मंत्री अजय कुमार मिश्रा की घोषणा पर सवाल उठाया है कि एक धार्मिक निकाय की ओर से जारी किए गए पहचान पत्र आधिकारिक पहचान दस्तावेज कैसे हो सकते हैं. कब दिया था अजय कुमार मिश्रा ने बयान? मंत्री मिश्रा ने 26 नवंबर को उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर में मतुआ समुदाय के एक कार्यक्रम भाग लेने के दौरान यह बयान दिया था. समुदाय की ओर से सीएए को तत्काल लागू करने की मांग की गई है. कौन हैं मतुआ समुदाय के लोग? रिपोर्ट के मुताबिक, मतुआ बड़े दलित नामशूद्र समुदाय का हिस्सा हैं, जो 1947 में भारत के विभाजन और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से पलायन कर गए थे. क्या कहा था मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने? मंत्री मिश्रा ने 26 नवंबर को कहा था, ''“मैं आश्वस्त कर रहा हूं कि मतुआ समुदाय के सदस्य अपनी नागरिकता नहीं खोएंगे. मेरे पास जो ताजा जानकारी है उसके अनुसार, सीएए के लिए कानून 30 मार्च 2024 तक तैयार कर लिया जाएगा.'' अपने भाषण के दौरान ही मिश्रा ने कहा था कि महासंघ की ओर से जारी किए गए पहचान पत्र पूरे भारत में आधिकारिक दस्तावेज माने जाएंगे. कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किसी भी टीवी पर नहीं हुआ था लेकिन मंत्री के भाषण के वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए, जिससे विवाद खड़ा हो गया.  असीम सरकार का केंद्रीय मंत्री पर निशाना शरणार्थी आंदोलन से जुड़े असीम सरकार ने कहा, ''एक केंद्रीय मंत्री इस तरह का बयान कैसे दे सकते हैं? क्या किसी धार्मिक संगठन की ओर से जारी कार्ड को आधिकारिक पहचान दस्तावेज माना जा सकता है? ये कार्ड महासंघ की ओर से काफी समय से जारी किए जा रहे हैं. सीएए को लागू करना देशभर में रहने वाले लाखों पूर्ववर्ती शरणार्थी चाहते हैं.'' क्या है सीएए? नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) 2019 में संसद में पारित हुआ था. सीएए 2015 से पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में प्रवेश करने वाले गैर-मुस्लिमों को नागरिकता प्रदान करता है. टीएमसी ने सीएए असंवैधानिक करार दिया है. उसका कहना है कि यह धर्मनिरपेक्ष देश में नागरिकता को धर्म से जोड़ता है. यह भी पढ़ें- Uttarkashi Tunnel Rescue: सुरंग में फंसे 41 मजदूर निकले बाहर, 8 राज्य में परिजनों के गांवों में जश्न का माहौल

मतुआ आई कार्ड पर केंद्रीय मंत्री के बयान से शुरू हुआ बंगाल बीजेपी में विवाद, जानें क्या है मामला?

West Bengal BJP Controversy: अखिल भारतीय मतुआ महासंघ की ओर से मतुआ समुदाय के सदस्यों को जारी किए गए पहचान पत्र पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बयान से उनकी पार्टी के भीतर ही विवाद खड़ा हो गया है.

मंत्री मिश्रा ने हाल में बयान दिया कि अखिल भारतीय मतुआ महासंघ की ओर से दलित मतुआ समुदाय के सदस्यों को जारी किए गए पहचान पत्र को पूरे भारत में एक आधिकारिक पहचान दस्तावेज के रूप में माना जाएगा, जब तक कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू नहीं हो जाता.

एचटी की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर 24 परगना जिले के हरिनघाटा से बीजेपी विधायक असीम सरकार ने सार्वजनिक रूप से मंत्री अजय कुमार मिश्रा की घोषणा पर सवाल उठाया है कि एक धार्मिक निकाय की ओर से जारी किए गए पहचान पत्र आधिकारिक पहचान दस्तावेज कैसे हो सकते हैं.

कब दिया था अजय कुमार मिश्रा ने बयान?

मंत्री मिश्रा ने 26 नवंबर को उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर में मतुआ समुदाय के एक कार्यक्रम भाग लेने के दौरान यह बयान दिया था. समुदाय की ओर से सीएए को तत्काल लागू करने की मांग की गई है.

कौन हैं मतुआ समुदाय के लोग?

रिपोर्ट के मुताबिक, मतुआ बड़े दलित नामशूद्र समुदाय का हिस्सा हैं, जो 1947 में भारत के विभाजन और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से पलायन कर गए थे.

क्या कहा था मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने?

मंत्री मिश्रा ने 26 नवंबर को कहा था, ''“मैं आश्वस्त कर रहा हूं कि मतुआ समुदाय के सदस्य अपनी नागरिकता नहीं खोएंगे. मेरे पास जो ताजा जानकारी है उसके अनुसार, सीएए के लिए कानून 30 मार्च 2024 तक तैयार कर लिया जाएगा.'' अपने भाषण के दौरान ही मिश्रा ने कहा था कि महासंघ की ओर से जारी किए गए पहचान पत्र पूरे भारत में आधिकारिक दस्तावेज माने जाएंगे. कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किसी भी टीवी पर नहीं हुआ था लेकिन मंत्री के भाषण के वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए, जिससे विवाद खड़ा हो गया. 

असीम सरकार का केंद्रीय मंत्री पर निशाना

शरणार्थी आंदोलन से जुड़े असीम सरकार ने कहा, ''एक केंद्रीय मंत्री इस तरह का बयान कैसे दे सकते हैं? क्या किसी धार्मिक संगठन की ओर से जारी कार्ड को आधिकारिक पहचान दस्तावेज माना जा सकता है? ये कार्ड महासंघ की ओर से काफी समय से जारी किए जा रहे हैं. सीएए को लागू करना देशभर में रहने वाले लाखों पूर्ववर्ती शरणार्थी चाहते हैं.''

क्या है सीएए?

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) 2019 में संसद में पारित हुआ था. सीएए 2015 से पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में प्रवेश करने वाले गैर-मुस्लिमों को नागरिकता प्रदान करता है. टीएमसी ने सीएए असंवैधानिक करार दिया है. उसका कहना है कि यह धर्मनिरपेक्ष देश में नागरिकता को धर्म से जोड़ता है.

यह भी पढ़ें- Uttarkashi Tunnel Rescue: सुरंग में फंसे 41 मजदूर निकले बाहर, 8 राज्य में परिजनों के गांवों में जश्न का माहौल